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एक्स रे की मदद से न्यूरॉन को सक्रिय बनायेंगे
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नैनो पार्टिकल्स अंदर रहकर यह काम करेंगे
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लाल रंग का प्रभाव नीला रंग से अधिक होता है
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प्राचीन भारतीय चिकित्सा विज्ञान में पहले से शामिल
राष्ट्रीय खबर
रांचीः रोशनी से जीवन का सीधा रिश्ता है, यह हम सभी जानते हैं। सूर्य की रोशनी से
हमारी दिनचर्या भी निर्धारित होती है। इंसान भले ही देर रात तक जागता और घूमता रहे।
दूसरे पशु पक्षी सूर्यास्त के बाद अंधेरे में आराम ही किया करते हैं। अगले दिन सूर्योदय से
रोशनी से वे फिर से जागते हैं। अब चिकित्सा विज्ञान के तहत इंसानी दिमाग का अध्ययन
कर रहे शोधकर्ताओं ने पाया है कि इस रोशनी से दिमाग का ईलाज किया जा सकता है।
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मस्तिष्क शोध की दिशा में एक और महत्वपूर्ण जानकारी सामने आयी
प्रारंभिक परीक्षण में उन्होंने देखा है कि जिनलोगों को चलने में दिमागी संतुलन नहीं मिल
पाता है, उनके लिए यह विधि कारगर है। एक्स रे उपकरण की मदद से ब्रेन के अंदर मौजूद
न्यूरॉनों को सक्रिय किया जा सकता है। यह एक्स रे उपकरण ठीक वैसा ही है , जैसा दांत
के डाक्टर इस्तेमाल किया करते हैं। दिमाग के बिजली का सर्किट ठीक नहीं होने क वजह
से अनेक लोगों को सही तरीके से चलने में परेशानी होती है, यह एक देखी हुई बात है।
दरअसल इस पर पहले ही शोध हो चुका है और यह देखा गया है कि दिमाग चलने के काम
आने वाली तरंगों को सही तरीके से शरीर के उन हिस्सों तक नहीं पहुंचा पाता, जो चलने
फिरने के काम में सक्रिय होते है। कई बार इन अंगों तक दिमागी संकेत सही ढंग से पहुंच
जाने के बाद भी उन अंगों से दिमाग तक काम होने का संकेत वापस नहीं लौट पाता है। इस
किस्म की परेशानी से पूरी दुनिया में प्रभावित होने वालों में 5 करोड़ लोग मिरगी, चार
करोड़ लोग शरीर के झटका खाने और एक करोड़ लोग पार्किंसंन की बीमारी से पीड़ित लोग
है। इसके अलावा भी अनेक लोग हैं जो दिमाग और शरीर के अन्य अंगों के बीच सही ढंग
से ताल मेल नहीं बैठा पाते हैं।
रोशनी से दिमाग को सक्रिय करने में रंगों का इस्तेमाल भी
यूएस डिपार्टमेंट ऑफ एनर्जी के एरोगॉन स्थित नेशनल प्रयोगशाला में शोधकर्ताओं ने इस
काम को आगे बढ़ाया है। उनके साथ वहां के चार विश्वविद्यालयों के वैज्ञानिक भी थे।
जिस पद्धति में आंशिक सफलता अर्जित की गयी है, वह ऑप्टिक्स और जेनेटिक्स पर
आधारित है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यह रोशनी से उपचार शायद अवसाद और दर्द
से मुक्ति दिलाने में भी कारगर हो सकता है।
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इस प्रयोग के तहत दिमाग के अंदर इंजेक्शन की मदद से नैनो पार्टिकल्स( अत्यंक सुक्ष्म
कण) डाले जाते हैं। यह खास किस्म के नैनो पार्टिकल्स होते हैं जो रोशनी में सक्रिय होते
हैं। इसलिए जब दिमाग के अंदर मौजूद इन नैनौपार्टिकल्स पर एक्स रे किरणों का असर
होता है जो वे अपने आस पास के न्यूरॉनों को भी सक्रिय कर देते हैं। शोध से जुड़े
अनुसंधानकर्ताओं का मानना है कि हो सकता है भविष्य में इस विधि के और उन्नत होने
पर दिमाग की सर्जरी का काम ही समाप्त हो जाए। इस शोध के बारे में प्रकाशित प्रबंध
के मुख्य लेखक और नेशनल लैब की वैज्ञानिक एलेना रोझकोवा कहती हैं कि बहुत ही
छोटे आकार के एक्स रे मशीन से यह काम किया जाना सहज भी है क्योंकि यह उपकरण
भी किसी भी दांत के डाक्टर के पास तक मौजूद होता है।
खास किस्म की तरंग से सक्रिय होता है दिमाग
दिमाग के अंदर खास किस्म के तरंग पैदा कर शारीरिक गतिविधियों को नियंत्रित करने
का काम काफी पहले भी आजमाया जा चुका है। इसके लिए दिमाग के अंदर खास इलाके
तक नैनो रॉड डाले जाते हैं, जो दिमाग के बाहर से संकेत प्राप्त करने वाले यंत्र से जुड़े होते
हैं। दूर से जब इस यंत्र तक संकेत भेजा जाता है तो दिमाग के अंदर की सक्रियता का
पैमाना बदल जाता है। वर्ष 1960 में स्पैनिश अमेरिकन वैज्ञानिक जोस मैनूएल रोडरिग्ज
डेलगाडो ने एक सांढ़ पर इस विधि का परीक्षण किया था। लोगों की मौजूदगी में उन्होंने
दिखाया था कि उनकी तरफ हमला करने के लिए दौड़ते एक सांढ़ को उन्होंने बिल्कुल
करीब आने पर इसी तरीके से बाहरी संकेत की मदद से खड़ा कर दिया था। उस पशु के
दिमाग में भी संकेत ग्रहण करने के लिए खास किस्म के इलेक्ट्रॉड लगाये गये थे। अभी जो
विधि आजमायी गयी है वह पहले से काफी उन्नत है। इस विधि में सुक्ष्म कणों को दिमाग
के अंदर भेजकर उन्हें बाहर से एक्स रे की मदद से सक्रिय करने और इन सक्रिय सुक्ष्म
कणों की मदद से किसी खास इलाके के दिमागी न्यूरॉनों को सक्रिय करने का काम हुआ
है। वैसे दिमाग के छोटे किस्म के ऑपरेशनों के लिए अब लेजर का इस्तेमाल भी होने लगा
है। अब इस एक्स रे विधि से दिमाग के अंदर सक्रियता पहुंचाने के लिए बाहर से कोई
इलेक्ट्रॉड नहीं लगाना पड़ता और दिमाग के अंदर लेजर के इस्तेमाल से जो आस पास के
तंतु जल जाते हैं, वह परेशानी भी नहीं होती। जो नैनो पार्टिकल पहुंचाये गये हैं, वे एक्स रे
किरणों से ऊर्जा प्राप्त कर उन्हें लाल रंग में बदल देते हैं।
नीले रंग के मुकाबले लाल रंग अधिक असरदार
यह जान लें कि दिमाग के अंदर नीले रंग के मुकाबले लाल रंग अधिक गहराई तक पहुंचता
है। दिमाग के अंदर इस किस्म से नई रोशनी पैदा होने की वजह से वहां के न्यूरॉन सक्रिय
होते हैं। शोध दल ने पहले से निर्धारित किसी छोटे से इलाके में ऐसी सक्रियता पैदा करने
में सफलता पायी है। इसलिए उन्हें उम्मीद है कि भविष्य में इसी विधि को और उन्नत
किया जा सकेगा।
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वैसे बताते चलें कि प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति में सूर्य की रोशनी से उपचार एक
प्रचलित नियम रहा है। आज भी पारंपरिक विधि से मरीजों का ईलाज करने वाले अनुभवी
वैद्य भी इसका उपयोग नियमित करते हैं। लेकिन वे किसी मशीन का सहारा नहीं लेते
बल्कि मरीज को सूर्य की किरणों से ऊर्जा लेकर अपनी परेशानी दूर करने की विधि बताते
हैं और शारीरिक संतुलन को सूर्य किरणों की रोशनी से बेहतर बनाते हैं।
[…] है, वह किसी प्रारंभिक निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए पर्याप्त है। इसमें […]