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झारखंड विधानसभा के सत्र में कई मुद्दे गरमायेंगे
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विपक्ष के पास विधि व्यवस्था का मुद्दा
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पूर्व सरकार के घोटाले गिनायेगी सत्ता
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रघुवर सरकार के फैसलों का हवाला
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किसान आंदोलन भी चर्चा का विषय
राष्ट्रीय खबर
रांचीः दोनों खेमों के बीच राजनीतिक गोलबंदी और रणनीति तैयार करने का काम
सामूहिक और व्यक्तिगत स्तर पर भी चल रहा है। झारखंड के अनेक विधायकों को इस
सत्र में अपनी सक्रियता की बदौलत क्षेत्र की जनता को यह बताना है कि कोरोना संकट
समाप्त होने के बाद वे जनता के लिए निरंतर प्रयासरत हैं। इसी वजह से यह तय है कि
सत्ता और विपक्ष एक दूसरे को पटखनी देने का कोई अवसर हाथ से जाने नहीं देगा।
दूसरी तरफ राज्य के बजट में पिछला कितना पैसा खर्च नहीं हो पाया है, केंद्र से जीएसटी
के मद में कितना पैसा नहीं मिल पाया है, यह सभी विषय निश्चित तौर पर किसी न किसी
रुप में विधानसभा के अंदर चर्चा में आयेंगे।
भाजपा ने अपनी तरफ से फिर से गोलबंदी करने के लिए प्रदेश भाजपा कार्यालय के पास
ही विधायकों की एक बैठक बुलायी थी। इसमें हुई बातचीत और निर्णयों के बारे में प्रेस को
जानकारी दी गयी है। लेकिन अंदरखाने से यह बात भी आयी है कि खास तौर पर भाजपा
ने हेमंत सोरेन की सरकार को घेरने के लिए कुछ अदृश्य हथियार भी तैयार रखे हैं। मौका
देखते ही भाजपा इन हथियारों का इस्तेमाल करने से भी नहीं चूकेगी।
दोनों खेमों के पास हमला और बचाव की तैयारी
सत्ता पक्ष की तरफ से तुरुप का पत्ता पिछली सरकार की गलतियां है। इनकी जांच का
उल्लेख होने के साथ साथ पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास का नाम उछल जाता है। जब जब
इसकी चर्चा होने लगती है तो भाजपा बिना कुछ कहे ही बैकफुट पर आ जाती है। लेकिन
भाजपा की तरफ से विधानसभा में प्रतिपक्ष का नेता नहीं बनाये जाने का मुद्दा खुद भाजपा
की पहले की कारगुजारियों का ही नतीजा है। जब बाबूलाल मरांडी झारखंड विकास मोर्चा
में थे तो भाजपा ने उनके खिलाफ पांच साल तक यही दांव आजमाया था। अब
परिस्थितियां बदल चुकी हैं और जिस दांव से भाजपा पहले मैदान जीतती आयी है, वही
दांव उसके गले की फांस बना हुआ है।
दूसरी तरफ देश के सबसे बड़े मुद्दे किसान आंदोलन का हथियार भी सरकार के पास है।
राज्य के वित्त मंत्री डॉ रामेश्वर ऊरांव पहले ही केंद्र से जीएसटी का पैसा नहीं मिलने की
बात कोरोना काल में ही कह चुके हैं। लिहाजा इस बार के बजट में क्या कुछ खर्च हुआ और
क्या आमद की उम्मीद है, यह आकलन फिलवक्त उनकी झोली में है। कुल मिलाकर
झारखंड विधानसभा का बजट सत्र कई मायने में राज काज की चर्चा कम और राजनीतिक
जोर आजमाइश का अखाड़ा ज्यादा बन सकता है।
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