भाजपा किसानों के साथ साथ कई मोर्चों पर एक साथ संघर्ष कर रही है। तीन कृषि कानूनों
के मुद्दे पर आंदोलनरत किसान 26 जनवरी को ट्रैक्टर परेड निकालने वाले हैं। किसान
नेताओं की माने तो दिल्ली की बाहरी सीमा में परेड निकालने के लिए अधिकांश हिस्सों की
उन्हें अनुमति मिल गयी है। कुछेक इलाकों से इस ट्रैक्टर परेड के गुजरने पर दिल्ली
पुलिस को आपत्ति है, जिसे सुलझाया जा रहा है। लेकिन मसला ट्रैक्टर परेड का नहीं है।
भाजपा ने हर स्तर पर इससे पूर्व के सारे आंदोलनों को कुचलने में सफलता पायी थी।
पहली बार किसानों के आंदोलन में आकर भाजपा की यह गाड़ी फंस सी गयी है, ऐसा
लगता है। घटनाक्रम यह साबित कर चुके हैं कि कृषि कानूनों का फैसला सीधे प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी का ही फैसला है। इसी वजह से पार्टी के दूसरे नेता बहुत आगे बढ़कर इस बारे में
कुछ बयान भी नहीं दे रहे हैं। हरियाणा, पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के साथ साथ
राजस्थान के भाजपा नेता भी खुलकर पार्टी नेतृत्व को यह नहीं बता पा रहे हैं कि इस
आंदोलन की वजह से ग्रामीण इलाकों तक उनका पहुंचना बहुत कठिन हो गया है। वैसे
भाजपा के नेता अपने केंद्रीय नेतृत्व से कुछ नहीं भी बोलें तो करनाल में मुख्यमंत्री मनोहर
लाल खट्टर की जनसभा का क्या हाल हुआ है, यह सबकी आंखों के सामने है। दूसरी तरफ
किसानों के ट्रैक्टर परेड के बारे में आंदोलनकारियों का दावा है कि उनका आगामी 26
जनवरी को ट्रैक्टर परेड एक सौ किलोमीटर लंबा हो सकता है। अन्य राज्यों से किसानों का
जत्था दिल्ली की सीमा पर पहुंचने लगा है। दूसरी तरफ पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश
के किसानो का बड़ा दल अपने अपने इलाकों से ट्रैक्टर के साथ ही आगे बढ़ रहा है।
भाजपा किसानों के जितना दबा रही है वे उतना ही उभर रहे
25 जनवरी तक दिल्ली की सीमा के करीब पहुंच गये हैं। उन्हें भी इस इस ट्रैक्टर परेड
में भाग लेना है। पानीपत के पास सैकड़ों ट्रैक्टरों के एक साथ पहुंच जाने की वजह से कल
शाम राष्ट्रीय राजपथ काफी देर के लिए जाम हो गया था। यह सभी किसान दिल्ली के
लिए निकल चुके हैं।
सरकार द्वारा तीनों कृषि कानूनों को डेढ़ साल के लिए स्थगित करने के प्रस्ताव को
नामंजूर करने के बाद किसानों ने आज एक युवक को धर दबोचा। किसानों ने उसे मीडिया
के सामने चेहरा छिपाकर प्रस्तुत किया। वहां इस युवक ने कहा कि उसे और उसके कई
साथियों को आंदोलन के दौरान हिंसा फैलाने की जिम्मेदारी दी गयी थी। बाद में जब उसे
पुलिस के हवाले कर दिया गया तो युवक ने अपना बयान बदल दिया और कहा कि उसे
लड़की छेड़ने के फर्जी मामले में पकड़ा गया था। किसान नेताओं ने दबाव डालकर उससे
झूठ बुलवाया है। सरकारी एजेंसियों द्वारा किसानों के ट्रैक्टर परेड के दौरान हिंसा की
आशंका जाहिर किये जाने के बाद भी नेताओँ ने स्पष्ट कर दिया है कि वे अपनी तरफ से
बहुत सतर्क हैं। इसलिए उनके परेड में किसी तरह की कोई हिंसा नहीं होगी।
आंदोलनकारियों ने पुलिस से भी इसकी विधिवत अनुमति मांगी है। किसान नेता राकेश
टिकैत ने साफ कर दिया है कि अब फैसला हो गया है तो किसानों का ट्रैक्टर परेड अवश्य
निकलेगा। निर्धारित कार्यक्रम के मुताबिक दिल्ली की परिधि में अपनी परेड आयोजित
करने के बाद किसान अपने अपने इलाके की तरफ लौट जाएंगे।
रिंग रोड पर अपनी परेड के बाद आंदोलनकारी लौट जाएंगे
इस बीच अगर पुलिस ने कहीं पर इस परेड में बाधा उत्पन्न किया तो यह आंदोलन उस
स्थान पर प्रारंभ होगा, जहां उसे रोका जाएगा। सोशल मीडिया में जिस तरह के वीडियो
और फोटो शेयर किये जा रहे हैं, उससे साफ है कि ट्रैक्टर परेड निश्चित तौर पर बहुत
विशाल होने जा रही है। इतनी बड़ी रैली को राजनीतिक प्रभाव को भाजपा नहीं समझ पा
रही है, ऐसा नहीं माना जा सकता है। चुनावी रणनीति के मोर्चे पर भाजपा के पास दूसरे
दलों के मुकाबले अधिक कुशल सेनापतियों की फौज है। इन्हीं के प्रयासों का नतीजा है कि
अब पश्चिम बंगाल की फायर ब्रांड मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी अपना आपा खो रही है।
बिहार में सुशासन बाबू के तेवर भी ढीले पड़ चुके है। इसलिए भाजपा किसानों के इस
आंदोलन के नफा नुकसान को नहीं समझ पा रही होगी, ऐसा नहीं माना जा सकता है।
इसलिए यह कहा जा सकता है कि दरअसल भाजपा किसानों के मुद्दे पर बहुत बड़ा जुआ
खेल चुकी है, जिसके अत्यंत खतरनाक नतीजे भी हो सकते हैं। किसानों की सोच अपनी
खेती, फसल और फसल के दाम पर केंद्रित है। इस मुद्दे पर भाजपा किसानों को नाराज कर
राजनीतिक मैदान में कितना टिक पायेगी, यह चुनावी राजनीति में नई बहस का विषय
बनता जा रहा है क्योंकि किसानों की सोच और उनकी राजनीति चुनावी राजनीति को
काफी हद तक प्रभावित करने की क्षमता रखती है।
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