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हर साल कुछ सेंटीमीटर बढ़ने का आंकड़ा
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शायद जमीन के नीचे हो रहा है बदलाव
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प्रशांत महासागर का आकार घट रहा है
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क्यों हो रहा है, बात समझ में नहीं
राष्ट्रीय खबर
रांचीः अटलांटिक महासागर हर साल थोड़ा बड़ा होता जा रहा है। दूसरी तरफ प्रशांत
महासागर हर साल थोड़ा छोटा हो रहा है। इसे वैज्ञानिक जानते हैं और आधुनिक उपकरणों
की मदद से इसकी पुष्टि भी हो चुकी है।लेकिन वैज्ञानिक इस प्रश्न का उत्तर अब तक नहीं
दे पाये हैं कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है। हमें पहले से ही यह मालूम है कि दुनिया का हर
महासागर एक जैसा अथवा एक भौगोलिक आकार का नहीं है। अब इन दो बड़े महासागरों
में हो रहे इस बदलाव से धरती और जमीन पर भी इसका प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है। वैसे
भी प्रदूषण की वजह से दोनों ध्रुवों पर जिस तेजी से ग्लेशियर पिघल रहे हैं, उससे भी समुद्र
का जल स्तर ऊपर चढ़ रहा है। लेकिन इसके बाद भी महासागरों का आकार बदलने का
कोई विज्ञान सम्मत तर्क अब तक सामने नहीं आ पाया है। अटलांटिक महासागर हर साल
कुछ सेंटीमीटर बढ़ता हुआ पाया जा रहा है। उसी तरह प्रशांत महासागर हर साल कुछ
सेंटीमीटर घटता हुआ भी दर्ज किया जा रहा है। वैज्ञानिकों का प्रारंभिक अनुमान है कि
पृथ्वी की गहराई में टेक्नोनिक प्लेटों की स्थिति में अंतर ही वजह से सतह के ऊपर ऐसा
होता हुआ हमलोग देख पा रहे हैं। पृथ्वी के गर्भ में झांकने का कोई वैज्ञानिक उपकरण
फिलवक्त तक हमारे पास मौजूद नहीं है। लेकिन वैज्ञानिक यह मानते हैं कि इसी किस्म
से अगर बदला जारी रहा तो एक समय ऐसा भी आयेगा कि अत्यंत तेजी से सब कुछ
बदलेगा और उसकी वजह से पृथ्वी के जमीनी इलाकों का संतुलन भी पल भर में बदल
सकता है। यह अपने आप में बहुत बड़ा खतरा होगा। इसी वजह से इस पर अधिक और
निरंतर नजर रखी जा रही है। कभी भी यह संतुलन अगर बिगड़ा तो अनेक इलाके समुद्र
में समा जाएंगे।
अटलांटिक महासागर के विपरीत स्थिति है प्रशांत महासागर की
यह पहले से पता है कि पृथ्वी पर मौजूद महासागरों की सीमा अलग अलग है यानी वे
आकार में एक जैसे नहीं है। इतना ही नहीं बल्कि पानी के अंदर उनकी गहराई भी अलग
अलग स्थानों पर अलग अलग है। अब उनकी स्थिति बदलने का खास वजह गहराई में
टेक्टोनिक प्लेटों के बीच जारी संघर्ष भी हो सकता है। इतनी बात तो वैज्ञानिक समझ चुके
हैं कि अमेरिका के नीचे स्थित धरती का यह टेक्टोनिक प्लेट अपने साथ जुड़े यूरोप के
नीचे के टेक्टोनिक प्लेट से दूर जा रहा है। इसी तरह अफ्रीका के टेक्टोनिक प्लेट भी यूरोप
से अलग जा रहे हैं। शायद इसी वजह से पृथ्वी के ऊपर महासागरों की भौगोलिक स्थिति
भी बदल रही है। एक नये शोध में इस पर प्रकाश डालने की कोशिश की गयी है। इस शोध
पर एक लेख भी प्रकाशित हुआ है, जो अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त पत्रिका नेचर में छप चुका
है। इस नये शोध में यह अनुमान व्यक्त किया गया है कि समुद्र की गहराई में जो विशाल
पर्वत श्रृंखलाएं हैं, वे भी टेक्टोनिक प्लेटों के खिसकने की वजह से अपना स्थान बदल रही
हैं। इनमें से कई इलाके और अधिक गहराई में डूब रहे जबकि कुछ ऊपर की तरफ उठ रहे
हैं। समुद्र के अंदर होने वाले इस बदलाव का उसके आकार पर असर होना स्वाभाविक है।
साउथेम्पटन विश्वविद्यालय के एक दल ने इस पर गहन शोध किया है। अपनी सोच को
समझने के लिए शोध दल ने अटलांटिक के मध्यम में 39 सिस्मोमीटर उतारे थे। समुद्र के
तल पर काम करने वाले यह उपकरण वहां के अंदर की गतिविधियो के बारे में नियंत्रण
कक्ष को जानकारी देते रहते हैं। इन अत्याधुनिक यंत्रों की मदद से भी समुद्र की गहराई के
काफी नीचे जमीन के अंदर हो रही हलचलों का पता चल रहा है।
लगातार संकेत भेज रहे हैं समुद्र तल पर लगे यंत्र
यंत्रों से मिले संकेतों के मुताबिक यह सारी गतिविधियां समुद्री तल से भी करीब साढ़े छह
सौ किलोमीटर की गहराई में घटित हो रही हैं। इससे समुद्र के अंदर भी कई किस्म की
रासायनिक प्रतिक्रियाएं हो रही है, उसकी भी पुष्टि हो चुकी है। पृथ्वी के केंद्र के बाहरी
आवरण पर जमा पदार्थ इन हलचलों की वजह से ऊपर की तरफ आ रहा है। वैज्ञानिक
मानते हैं कि पहले इसकी गति जितनी धीमी होने का अनुमान लगाया गया था वास्तव में
यह प्रक्रिया उससे काफी अधिक तेज चल रही है। जहां जहां समुद्र तल में पर्वत श्रृंखलाएं
फैल रही है, वहां का समुद्र भी नये इलाकों को अपने अंदर समाहित करता जा रहा है। दूसरी
तरफ जहां यह धंस रहे हैं, वहां समुद्र सिकुड़ रहा है। कुल मिलाकर यह बहुत ही अनिश्चित
सी स्थिति है जो कभी भी सब कुछ उलट पुलट कर सकती है।
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[…] प्लेटों के खिसकने की वजह से पृथ्वी के महासागरों की स्थिति भी बदलती रही […]