गुवाहाटीः अरुणाचल प्रदेश की स्थिति ही कुछ ऐसा है कि वह प्रारंभ से ही हमेशा से ही चीन
की आंखों में खटकता रहा है। वहां के कुछेक इलाकों पर भारतीय राजनेताओं के जाने पर
भी चीन हमेशा से विरोध दर्ज कराता आया है। अब सूचना आयी है कि प्योंगोंग झील के
पास भारतीय सेना के साथ झड़प होने के बाद चीन ने अपने पर्यटकों के लिए यह झील
खोल दी है। यानी वह दर्शाना चाहता है कि यह इलाका न सिर्फ उसके कब्जे में है बल्कि यह
दरअसल उसी का इलाका है। चीन अथवा कई अन्य शासक इस तरह की गलती पहले भी
कर चुके हैं। चीन जिस बात को झूठ साबित करना चाहता है उसका असली सच क्या है,
यह सारी दुनिया तिब्बत एक बहुत बड़े हिस्से पर चीनी कब्जा से देखती आयी है। वहां के
मूल निवासियों ने अब तक खुद को चीन का नागरिक नहीं माना है। वे तो मजबूरी में इस
व्यवस्था के तहत जीने पर मजबूर है। लेकिन अरुणाचल प्रदेश की चर्चा इसलिए अधिक
महत्वपूर्ण है क्योंकि गलवान घाटी के हिंसक टकराव के बाद से ही वहां हमेशा कुछ न कुछ
हरकत चीन की तरफ से होती जा रही है।
दरअसल इस इलाके के कुछ स्थान ऐसे हैं, जहां भारतीय सेना बेहतर सैन्य संतुलन की
स्थिति में है। 1962 का युद्ध हार जाने का बाद हमने इसके पास ही नाथूला पास के इलाके
में चीन को मार भगाया था वरना वह भी आज चीन का हिस्सा होता। वैसे चीन अब भी उसे
अपना इलाका तथा इलाके पर जबरन भारतीय कब्जा होने की बात कहता आया है।
अरुणाचल प्रदेश की सीमा पर हमेशा चीन का दबाव रहा है
अरुणाचल प्रदेश की स्थिति यह है कि वहां भी चीन उकसाने वाली कार्रवाई लगातार कर
रहा है। मजबूरी में भारतीय सेना को अब अधिक कठोर होना पड़ा है। चीन की सेना ने वहां
के पांच युवकों का अपहरण कर लिया है, ऐसी चर्चा इलाके में तनाव पैदा कर रही है। इस
घटना की संयुक्त जांच के बाद भारतीय सेना और अरुणाचल पुलिस पांच अपहृत लोगों
को बचाने के लिए सीमावर्ती इलाकों और पहाड़ों में तवांग की तरह सिक्किम भूटान की
पहाड़ियों और पहाड़ों के जंगल में उच्च शक्तिशाली ड्रोन कैमरा जोड़िए एक संयुक्त
अभियान चला रही हैं। भारतीय सेना के वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा कि भारत और चीन
सीमा विवाद को सुलझाने के लिए बातचीत कर रहे हैं। लेकिन दोनों देशों के सैन्य कमांडरों
की निरंतर हो रही बात चीत के बाद भी उसका कोई नतीजा निकलता नजर नहीं आ रहा
है। बीच में सिर्फ यह सूचना अवश्य बाहर आयी है कि टकराव टालने के लिए एक चीनी
कमांडर द्वारा अपनी सेना को पीछे हटा लेने की वजह से वरीय अधिकारी बहुत नाराज हुए
हैं। इस नाराजगी से भी समझा जा सकता है कि चीन लगातार इस सीमा पर भारत को
उलझाये रखना चाहता है। दूसरी तरफ वह चोर दरवाजे से भारत में अपना कारोबार भी
जारी रखना चाहता है। अरुणाचल प्रदेश की टैगिन समुदाय के पांच युवक अगवा किये गये
हैं। स्थानीय लोगों के मुताबिक चीन के सैनिकों ने उन्हें नाचो क्षेत्र के जंगल से पकड़ा था
और अपने साथ ले गये हैं। यह क्षेत्र सुबनसिरी जिले में पड़ता है। हालांकि चीन लद्दाख में
आंखें दिखा रहा है, लेकिन असली निशाना अरुणाचल प्रदेश है।
लद्दाख के बहाने चीन का असली निशाना यही इलाका है
चीन शुरू से ही अरुणाचल प्रदेश और बौद्ध मठ तवांग पर नजर गड़ाए हुए है। 1962 के युद्ध
के दौरान, तवांग पर कब्जा कर लिया गया था। लेकिन बाद में उन्हें युद्धविराम के तहत
पीछे हटना पड़ा। चीन तवांग को अपने साथ ले जाना चाहता है और तिब्बत जैसे प्रमुख
बौद्ध स्थलों पर कब्जा करना चाहता है। वह तवांग को तिब्बत का हिस्सा मानता है। उनका
दावा है कि तवांग और तिब्बत में बहुत सारी सांस्कृतिक समानताएँ हैं। तवांग मठ को
एशिया का सबसे बड़ा बौद्ध मठ भी कहा जाता है। अरुणाचल प्रदेश चीन के साथ 3,488
किलोमीटर की सीमा साझा करता है। इस राज्य में जनसंख्या अनुपात भी दिलचस्प है।
राज्य की आबादी का केवल 10 प्रतिशत तिब्बती है। 68 प्रतिशत आबादी भारत-
मंगोलियाई जनजातियों की है और बाकी लोग असम और नागालैंड से यहाँ आकर बसे हैं।
37 प्रतिशत आबादी के साथ हिंदू अभी भी राज्य का सबसे बड़ा धार्मिक समुदाय है। बौद्ध
लोग 13 प्रतिशत आबादी रखते हैं। राज्य में 50 से अधिक भाषाएँ और बोलियाँ बोली जाती
हैं। अरुणाचल की लगभग दस लाख की आबादी 17 शहरों और साढ़े तीन हजार से अधिक
गांवों में फैली हुई है। इसलिए भी अरुणाचल प्रदेश की गतिविधियों का तिब्बत और भूटान
पर भी अधिक असर पड़ता है, इसे भारत को हमेशा याद रखना चाहिए। लद्दाख में विवाद
प्रारंभ होने के काफी पहले ही यहां के भाजपा सांसद ने चीन के आक्रामक रवैये की
शिकायत करते हुए यह कहा था कि यहां भी डोकलाम जैसी स्थिति आ सकती है। इसलिए
भारत को अरुणाचल प्रदेश की हर गतिविधि पर लगातार निगरानी रखनी चाहिए।
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