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विधानसभा चुनाव के लिए ठहरी हुई थी सीबीआई
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भागलपुर का कोई पूर्व जिलाधिकारी ही जाल में
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दो अफसरों के नाम इस घोटाले में पहले से ही
दीपक नौरंगी
भागलपुरः चुनाव निपटा तो अब उम्मीद की जा रही है कि सृजन घोटाले में भी सीबीआई
जांच की गाड़ी आगे बढ़ेगी। खबर के मुताबिक किसी सेवानिवृत्त आइएएस अधिकारी को
इस घोटाले के सिलसिले में अब गिरफ्तार भी किया जा सकता है।
वीडियो में देखिये इस पर खास रिपोर्ट
बिहार ही नहीं पूरे देश में बहुचर्चित इस सृजन घोटाले की जांच को आनन फानन में राज्य
पुलिस से लेकर सीबीआई के सुपुर्द कर दिया गया था। प्रारंभिक तेजी से बाद स्पष्ट हो
गया था कि सीबीआई भी इस मामले में लेटलतीफी की राह पर चल रही है। चंद कनीय
अधिकारियों और बैंक के कुछ लोगों पर कार्रवाई करने के सिवाय सीबीआई ने इस
बहुचर्चित घोटाले के मगरमच्छों पर हाथ डालने की पहल तक नहीं की थी। लेकिन बिहार
विधानसभा का चुनाव निपट जाने के बाद ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि सीबीआई को इस
मामले की जांच की गाड़ी को आगे बढ़ाने की शायद हरी झंडी मिल चुकी है। एक
सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी के मुताबिक इस सृजन घोटाले की जांच में जो तथ्य पहले
ही सामने आ चुके हैं, उसके आधार पर एक भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी को
पहले ही गिरफ्तार हो जाना चाहिए थे। शायद विधानसभा चुनाव सर पर होने की वजह से
सीबीआई को इस मामल में इंतजार करने के निर्देश मिले हुए थे। अब चुनाव निपटने के
बाद सीबीआई की कार्रवाई का शीघ्र होने की पूरी उम्मीद है।
चुनाव निपटा है तो जांच की गाड़ी बढ़ाना भी जरूरी
जो संकेत मिल रहे हैं उसके मुताबिक सृजन घोटाला में भागलपुर में पदस्थापित रहे किसी
प्रशासनिक अधिकारी को ही सबसे पहले गिरफ्तार किया जाना है। इस सूचना को अगर
आधार मानें तो इसमें केपी रमैय्या और वीरेंद्र यादव का नाम सबसे पहले याद आता है।
दोनों के नाम पहले से ही इस घोटाले में चर्चित हो चुके हैं। दरअसल सीबीआई अथवा कोई
अन्य जांच एजेंसी चाहकर भी जिला ट्रेजरी से हुए इस घोटाले के आरोप से किसी
प्रशासनिक अधिकारी को बचा भी नहीं सकता है। संक्षेप में फिर से बता दें कि कोषागार से
निकला पैसा सृजन के खाते में गया था। वहां से इस पूरी रकम की बंदरबांट हुई थी। किसी
स्वयंसेवी संस्था के खाते में यह पैसा किसके आदेश से गया, यह सवाल आज नहीं तो कल
उन सारे अधिकारियों को अपनी चपेट में ले लेगा, जो उस दौरान पदस्थापित रहे हैं।
इनमें से केपी रमैया को नीतीश कुमार का काफी करीबी माना जाता है। दूसरी तरफ वीरेंद्र
यादव लालू प्रसाद के करीबी रहे हैं। अब दोनों में से किस पर सीबीआई पहले कार्रवाई
करती है, इससे भी काफी कुछ स्पष्ट हो जाएगा। वैसे अब तक इस घोटाले के दो फरार
अभियुक्तों का अब तक गिरफ्तार नहीं होना भी इस पूरे घोटाले में राजनीतिक मिलीभगत
को बार बार स्पष्ट करता है। लेकिन अधिकारियों के ऊपर कौन कौन थे, इस पर बाजार में
तो काफी कुछ कहा जाता है लेकिन केंद्रीय जांच ब्यूरो की तरफ से किसी को पकड़ा नहीं
गया है इससे सीबीआई खुद ही संदेह के घेरे में आ खड़ी हुई है।
[…] जिलाधिकारी केपी रमैय्या की तरफ से जारी किया गया था। सरकारी […]