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प्राचीन काल में भी सारा भूभाग एक ही था
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आपस में टकराटक नये महाद्वीप बनायेंगे
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पहाड़ और नदियों में भी काफी बदलाव होगा
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कुछ लाख वर्षों में फिर से एक होगी पूरी जमीन
राष्ट्रीय खबर
रांचीः धरती के अंदर यानी पृथ्वी के गर्भ में लगातार उथल पुथल का दौर जारी है। जब
कभी पृथ्वी की गहराई का कोई आवरण इस हलचल की वजह से टूटता है तो हम भूकंप
अथवा ज्वालामुखी विस्फोट के परिणाम झेलते हैं। इसके बाद भी हम अब तक यह नहीं
महसूस कर पाते कि अंदर दरअसल क्या कुछ बदल रहा है। अब वैज्ञानिकों ने इस पर
निरंतर शोध के बाद एक निष्कर्ष निकाला है। इस निष्कर्ष का मूल सारांश यही है कि दसों
लाख वर्ष बाद फिर से पूरी धरती एक हो जाएगी यानी विभिन्न महादेशों में बंटा यह सारा
इलाका एक जमीन बनकर रह जायेगा। वैसे प्राचीन काल में भी यह एक ही था और
विभिन्न कालखंडों में यह टूटकर अलग अलग टेक्नोनिक प्लेटों के ऊपर विकसित होती
गयी है। इनमें से कई टेक्नोनिक प्लेट एक दूसरे के नीचे धंसे हुए हैं। कुछ में अब भी
निरंतर रगड़ाव की स्थिति है। अब कंप्यूटर मॉडल का आकलन है कि दरअसल पृथ्वी का
भूभाग फिर से अपनी प्राचीन स्थिति की तरफ लौट रहा है। इसी वजह से यह आकलन है
कि कई लाख वर्षों बाद यह पूरी जमीन फिर से एक दूसरे से जुड़ जाएगी। वैसे इस क्रम में
पृथ्वी की ऊपरी संरचना में कई बदलाव भी होंगे। कई विशाल पर्वत श्रृंखलाएं इस संघर्ष के
दौर में अपना आकार बदल लेंगे। कुछेक स्थानों पर नई पर्वत श्रृंखलाओँ का उदय भी
होगा। दूसरी तरफ इसी एक वजह से पूरी धरती के चारों तरफ फैले समुद्र का आकार भी
बदल जाएगा और कई समुद्र आपस में मिलकर एक हो जाएंगे। लेकिन इस काम को होने
में कई लाख या कहें तो दसों लाख वर्ष लगने जा रहे हैं। वैसे यह स्पष्ट है कि यह एक
निरंतर प्रक्रिया है और आज भी यह काम हमारी समझ से परे लगातार जारी ही है।
धरती के अंदर लगातार कुछ न कुछ उथल पुथल है
वैज्ञानिकों ने इसके लिए जिस मॉडल को तैयार किया है, उसके मुताबिक सारे महाद्वीप
धीरे धीरे धरती के उत्तरी हिस्से के तरफ बढ़रहे हैं। इस उत्तरी गोलार्ध में ही अंततः सभी
महाद्वीपों को आकर इकट्ठा हो जाना है। दूसरी तरफ शायद उस दौरान अकेले अंटार्कटिका
ही दूसरे छोर पर अकेला रह जाएगा। आकलन के मुताबिक यह प्रक्रिया थोड़ी भिन्न भी हो
सकती है। वैसे स्थिति में यह सारे महाद्वीप दोनों गोलार्ध के बीच में आकर एकत्रित होकर
एक नया भूभाग तैयार कर देंगे, जिसमें सभी महाद्वीप एक दूसरे से जुड़े हुए होंगे। इन
दोनों ही परिस्थितियों में पृथ्वी पर फिर से हिमकाल की सृष्टि होगी और यह हिमकाल भी
पहले की तरह कई लाख वर्षों का होगा।
यह पहले से ही लोगों को पता है कि पृथ्वी के वर्तमान महाद्वीप अभी जिस आकार में हैं, वे
प्राचीन काल में नहीं था। वैज्ञानिक तथ्यों के मुताबिक करीब तीन बिलियन वर्ष पहले कई
दौर की उथल पुथल के बीच यह एकजुट थे और बाद में टूटकर अलग होते चले गये। नासा
के गोडार्ड इंस्टिट्यूट फॉर स्पेस स्टडिज के मुख्य वैज्ञानिक मिशेल वे इस शोध दल के
नेता थे। उन्होंने पांजिया काल से लेकर अब तक हुए बदलावों को भी अपने शोध में
रेखांकित किया है। पांजिया काल में आज का अफ्रीका, नार्थ अमेरिका, साउथ अमेरिका
एक साथ ही था। लेकिन इस पांजिया काल के पहले भी एक विशाल महाद्वीप था, जिसे
वैज्ञानिक रोडिनिया कहते हैं और रोडिनिया काल से पहले नूना भूभाग था जो मूल भूभाग
के तौर पर विकसित होने के बाद विभिन्न कालखंडों में टूटकर अलग अलग होता चला
गया है। एक अन्य शोध में अफ्रीका और यूरोप के एक होने से तैयार आउरिका अथवा
अमेरिका और एशिया के एक होने से एमासिया महाद्वीप के बनने की संभावना जतायी
गयी है।
इस दौरान पृथ्वी के घूमने की गति भी बदल जाएगा
वैज्ञानिकों का यह भी आकलन है कि इस भविष्य के समय तक पहुंचने में पृथ्वी के घूर्णण
की गति भी थोड़ी बदल जाएगी। यह पता है कि वर्तमान में भी इसके घूमने की गति पहले
के मुकाबले कम होती जा रही है। इसलिए कई लाख वर्ष बाद शायद यह और धीमी होगी
और इस गति के कम होने की वजह से भी अलग अलग खंडों में बंटे महाद्वीप एक दूसरे के
करीब आने लगेंगे। इस दौर में पृथ्वी पर दिन की समय सीमा करीब आधा घंटा अधिक हो
जाएगी और सूर्य से पड़ने वाले प्रकाश का प्रभाव भी अभी के मुकाबले थोड़ा अधिक हो
जाएगा। इन सभी के बीच शोध का यह भी निष्कर्ष है कि इस दौर में पृथ्वी का तापमान
औसतन 7.2 डिग्री फारेनहाइट कम हो जाएगा। उस दौर के पहाड़ पर्वतों के शिखर पर और
अधिक ग्लेशियर बनेंगे, जो पृथ्वी में जल के प्रवाह की वर्तमान संरचना को भी पूरी तरह
बदल देंगे। हो सकता है कि इस बदलाव में धरती के अंदर की कई विशाल नदियां भी अपने
अस्तित्व को खो दें।
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