चीन के मोर्चे पर सिर्फ सैनिक तैनाती ही पर्याप्त नहीं है। पूर्व में हमारी व्यापारिक और
उत्पादन संबंधी खामियों का लाभ उठाते हुए चीन हमारी अर्थव्यवस्था में गहरी पैठ बना
चुका है। इसलिए इस आर्थिक मोर्चे पर भी निरंतर चौकसी की आवश्यकता है। सिर्फ
मणिपुर के एक हवाला रैकेट में चीन के एक नागरिक के शामिल होने को एक अपवाद
मानकर सुस्ती साधना गलत होगा। चीन के उत्पादनों की कीमत अंतर्राष्ट्रीय बाजार के
मुकाबले बहुत कम होने की वजह से अनेक भारतीय व्यापारियों ने चीन का रुख किया था।
खास तौर पर भारतीय बाजार में चीन में बने मोबाइल तो आसमान से नहीं टपके थे और न
ही चीन की किसी कंपनी ने अपनी शोरुम यहां स्थापित किया था। चीन ने अपनी नकल
करने की कला की वजह से अमेरिकी और यूरोप के तमाम बड़ी मोबाइल कंपनियों को सिर्फ
इसलिए पीछे छोड़ दिया क्योंकि उसके यहां उत्पादन लागत अन्य देशों की तुलना में बहुत
कम थी। इस बात की भी शिकायत रही है कि चीन में बने इलेक्ट्रानिक सामानों की
गुणवत्ता भी काफी घटिया रही है।लेकिन आम आदमी को जब अपने जेब की चिंता हो तो
यह घटिया सामान भी अगर सस्ते में मिल रहा है तो वह आम उपभोक्ता को पसंद आता
है। लिहाजा कंटेनरों में सामान बूक करने वाले भारतीय व्यापारियों की गतिविधियों पर भी
नजर रखने की जरूरत है। जिस तरीके से मणिपुर के हवाला रैकेट में शामिल चीनी
नागरिक के बारे में पता चला है कि उसने अपने भारतीय पासपोर्ट का लाभ उठाने के लिए
एक भारतीय लड़की से विवाह कर रखा था। ठीक उसी तरह चीन में कारोबार करने वाले
भारतीय कंपनियों ने क्या कुछ गुल खिला रखा है, उसकी भी जांच होनी चाहिए।
चीन के मोर्चे पर व्यापारिक सावधानी और भी जरूरी
अपुष्ट लेकिन काफी पहले से चर्चित विषय है कि चीन में व्यापार के लिए आपका चीन का
नागरिक होना जरूरी है। अनेक भारतीय सहित विदेशी नागरिकों ने इस चीनी नागरिकता
हासिल करने के लिए वहां की लड़कियों से शादी किया है। इंटरनेट पर इस बात के अनेक
प्रमाण मौजूद हैं कि इस किस्म की शादी का वास्तविक शादी से कोई संबंध नहीं होता। यह
अपने आप में एक किस्म का समझौता होता है, जिसमें आप किसी लड़की से शादी करने
के एवज में उसे एक निश्चित रकम का भुगतान करते हैं। उसके आगे कोई बात नहीं होती,
क्योंकि यह शुद्ध रुप से एक व्यापारिक रणनीति का हिस्सा होता है। अब जब चीन के
उत्पादनों के वहिष्कार की बात चल रही है तो कितने भारतीयों ने वहां इस किस्म की शादी
कर रखी है, उसकी भी लगे हाथ जांच होनी चाहिए। वरना अपने व्यापारिक हित के लिए वे
किसी दूसरे रास्ते से भी चीन के उत्पादनों को भारत में पहुंचाने का काम करते रहेंगे।
भारतीय बाजार पर बड़ी चालाकी से चीन ने किया है कब्जा
कोरोना और गलवान घाटी के हिंसक टकराव से काफी पहले से भारतीय ऑटोमोबाइल
उद्योग के लोग केंद्र सरकार से बार बार ऑटोमोबाइल उद्योग पर चीन के हमले की
शिकायत दर्ज करा रहे थे। दरअसल गाड़ियों के कल पूर्जे चीन से इतने सस्ते आ रहे थे कि
भारतीय निर्माताओं के लिए उसका मुकाबला करना असंभव हो गया था। लेकिन तब इन
शिकायतों पर केंद्र सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया था। इसलिए यह भी जांचा जाना
चाहिए कि मोबिइल और गणेश की इलेक्ट्रानिक मूर्ति पर विरोध जताने वाले ऐसे बड़े
उत्पादनों के भारत में प्रवेश पर रोक की दिशा में क्या कुछ हो रहा है, उसकी जानकारी भी
देश को होनी चाहिए वरना चौक चौराहों पर चीनी उत्पादनों के वहिष्कार की नारेबाजी से
तो हम कुछ हासिल नहीं कर पायेंगे। चीन के लिए भारत बहुत बड़ा बाजार बन चुका है।
ऐसे में वैश्विक अर्थव्यवस्था पर अपनी पकड़ बनाये रखने के लिए भारत का बाजार चीन
के लिए बहुत फायदेमंद है, यह हर कोई जानता है। लेकिन अब बदली हुई परिस्थिति में
चीन के मोर्चे किस रास्ते से भारत के अंदर तक पैठ बना रहे हैं, उसपर नजर रखना जरूरी
है। किसी ने सही कहा है कि बिना हथियार और गोली चले भी युद्ध हो सकता है। यह
कोरोना का वैश्विक दुष्काल लगभग वही स्थिति है, जहां हर तरफ युद्ध है लेकिन यह
हथियारबंद कोई लड़ाई नहीं है। इस बात को समझने के लिए किसी विशेष ज्ञान की
आवश्यकता नहीं है कि चीन के लिए भारत का बाजार जरूरी है। ऐसे में वह दूसरे रास्ते से
भी भारत के बाजार पर अपनी पकड़ बनाये रखने के लिए दूसरी चालें चल सकती है। यह
भी हो सकता है कि वह भारतीय मुखौटों को आगे कर अपना कारोबार आगे बढ़ाये।
मुखौटा कंपनियों को आगे बढ़ाकर करेगा कारोबार
इसलिए सिर्फ नारों तक ही चीन का विरोध सीमित नहीं रहना चाहिए बल्कि चीन के मोर्चे
पर हर तरीके से उसका प्रतिकार भी किया जाना चाहिए। साथ ही अगर हम चीन की तरह
उत्पादन लागत को कम कर सकें तो यह सबसे उत्तम बात होगी।
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