रांचीः छठी जेपीएससी के परिणाम को चुनौती देने वाली याचिका पर सोमवार को झारखंड
हाई कोर्ट में सुनवाई हुई। जस्टिस एसके द्विवेदी की अदालत में आज इस मामले से जुड़े
एक दर्जन से अधिक याचिकाओं पर सुनवाई हुई। इस दौरान अलग-अलग प्रार्थियों के
अधिवक्ताओं ने अपने-अपने मामलों में पक्ष रखा। नियुक्ति को चुनौती देने वाला प्रार्थी
प्रदीप राम व दिलिप सिंह वाद मे वादी व प्रतिवादी के तरफ से प्लीडिंग कंप्लीट कर दिया
गया है , लेकिन अन्य वादियों मे प्रार्थियों के द्वारा नोटिस करना शेष रह गया था जिसके
कारण जेपीएससी के वकील संजय पिपरवाल द्वारा सेपरेट नोटिस को लेकर कोर्ट से
आग्रह किया तत्पश्चात जस्टिस महोदय द्वारा अंतिम अवसर एक सप्ताह के अंदर
नोटिस करने का सख्त हिदायत दिया गया है।।जिससे कि तमाम याचिकाएं मैच्योर के
उपरांत ही सुनी जाएगी। वहीं प्रार्थी का वरीय अधिवक्ता व पूर्व महाधिवक्ता अजित कुमार
ने कोर्ट से शीघ्र ही तारीख देने का आग्रह किया जिसके पश्चात अदालत ने 3 फरवरी को
अंतिम सुनवाई के लिए तिथि निर्धारित कर दी है।
क्या है मामला
1: क्वालिफाइंग पेपर को जोडकर गलत तरीके से मेरिट बनाने के आलोक मे।
2: प्रत्येक पेपर मे न्युनतम अर्हता पालन ना करना।
3: सर्विस अलोकेशन मे गडबडी को लेकर।
बता दें कि इस महत्वपूर्ण मामले की पूर्व में हुई सुनवाई के दौरान अदालत ने निर्देश दिया
था कि फैसला आने तक छठी जेपीएससी की मुख्य परीक्षा की सभी उत्तर पुस्तिकाओं को
सुरक्षित रखा जाए। इसके साथ ही जेपीएससी से सभी सफल अभ्यर्थियों की जानकारी भी
मांगी गई थी ताकि इस मामले में उन्हें भी प्रतिवादी बनाया जा सके।
अभ्यर्थी उमेश प्रसाद का कहना है कि छठी जेपीएससी मे घोर अनियमितता बरती गई
चुंकि प्रथम पेपर क्वालिफाइंग पेपर था जो न्युनतम मात्र 30 अंक लाना अनिवार्यता है
लेकिन आयोग ने 30 से अधिक अंक प्राप्त करने वाले अभ्यर्थीयों को जोडकर मेघा सूची
बनाया गया जबकि भारत के किसी भी परीक्षा मे क्वालिफाइंग पेपर को नही जोड़ा जाता
है। श्री प्रसाद का कहना है कि जीएस पेपर मे न्यूनतम अर्हता का पालन ना करना अयोग्य
अभ्यर्थी का चयन होना प्रायिकता प्रबल हो जाता है। चूंकि प्रशासनिक अधिकारी बनने के
लिए आपको प्रत्येक पेपर जो विभिन्न विषयों का बेसिक जानकारी होना जरूरी है। उमेश
प्रसाद बताते है कि जीएस पेपर अर्थशास्त्र, भूगोल, इतिहास,राजनीति विज्ञान व लोक
प्रशासन एवं विज्ञान है, उपरोक्त विषयों का गहरी अध्ययन तभी करेंगे जब हरेक पेपर मे
न्युनतम अर्हता तय रहेगा अन्यथा एक पेपर मे असफल होने के बावजूद भी अभ्यर्थी को
बीडीओ, डीएसपी के लिए चयन करना आयोग द्वारा नियम विरूद्ध व बेमेल है।प्रशासनिक
अधिकारी बनने के लिए समावेशी होनी चाहिए। लिहाजा तमाम पीड़ित अभ्यर्थियों को
माननीय न्यायालय की ओर निगाहें टिकी हुई है।
[…] पर झारखंड हाई कोर्ट में सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान अदालत […]