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अटलांटिक महासागर में चल रहा है संयुक्त अभियान
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चांद और मंगल से कम जान पाये हैं समुद्री तल को
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गहराई में भी पर्यावरण असंतुलन का सीधा प्रभाव
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समुद्र की गहराइयों में अब भी बहुत कुछ अनजाना
राष्ट्रीय खबर
रांचीः बारह नई प्रजातियों की जानकारी वैज्ञानिकों को मिली है। यह सभी जीव समुद्र के
हैं। इसलिए यह माना जा सकता है कि समुद्र के अंदर के बारे में हमारा विज्ञान अब तक
सब कुछ नहीं जान पाया है। जैसे जैसे तकनीकों का विकास हो रहा है, हम समुद्र की
गहराई में बेहतर तरीके से देख पा रहे हैं। हम जिन बारह प्रजातियों की चर्चा कर रहे हैं, वे
सभी अटलांटिक महासागर में पाये गये हैं। इससे पहले इन प्रजातियों को इंसानी तकनीक
नहीं खोज पायी थी। लिहाजा इस संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि समुद्र
की गहराइयों में अब भी बहुत कुछ ऐसा हो सकता है, जिसके बारे में हम वाकई कुछ नहीं
जानते हैं। अनेक गहरे इलाकों तक अब भी हमारा विज्ञान पहुंच भी नहीं पाया है।
पिछले पांच साल से जारी अनुसंधान के साथ साथ एक वैश्विक परियोजना पर भी दुनिया
भर के समुद्र विज्ञानी काम कर रहे हैं। इसके तहत पूरी पृथ्वी के सारे समुद्रों के अंदर की
स्थिति का कंप्यूटर मॉडल तैयार किया जाना है। ऐसा इसलिए किया जा रहा है क्योंकि
महासागरों के अनेक इलाकों तक न तो इंसान पहुंच पाया है और न ही इंसान द्वारा बनाये
गये अत्याधुनिक यंत्र की नजर जा पायी है। लेकिन इस दौर में बारह नई प्रजातियों का
पाया जाना यह साबित कर देता है कि अब भी समुद्र की गहराइयों में बहुत कुछ अनजाना
है। जैसे जैसे इंसान की पहुंच बढ़ रही है और अनुसंधान में वैज्ञानिक उपकरणों का प्रयोग
हो रहा है, वैसे वैसे नये नये तथ्य सामने आ रहे हैं। जो नई प्रजातियां खोजी गयी हैं उनमें
सिर्फ जीव ही नहीं हैं बल्कि शैवाल और कोरल जैसी प्रजातियां भी हैं। समुद्री तल पर नहीं
झांक पाने की वजह से पहले इन्हीं नहीं देखा जा सका था।
बारह नई प्रजातियां ही अंतिम नहीं हैं अभी और हो सकता है
इस शोध से जुड़े वैज्ञानिकों ने स्पष्ट कर दिया है कि नई खोज के तहत आने वाली सभी
बारह प्रजातियां पर्यावरण असंतुलन की वजह से पहल की विलुप्ति की कगार पर हैं।
मौसम के बदलाव का असर भी इन पर हो रहा है। खास कर कोरल के अनेक जंगल पूरी
तरह साफ हो जा रहे हैं। ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि समुद्री जल में अधिक कार्बन
डॉईऑक्साइड के घूलने की वजह से वहां का खारा पानी और अधिक अम्लिय हो रहा है।
इसलिए शोधकर्ताओँ ने खास तौर पर कहा है कि जहां यह प्रजातियां पायी गयी हैं, उन
इलाकों का संरक्षण बेहद जरूरी है। इनमें से कुछ तो समुद्री तल पर बने गर्म पानी के सोतों
के करीब ही निवास करती हैं। इसलिए इन इलाकों की स्थिति को अगर यथावत रखा जा
सका तो यह प्रजातियां बची रहेंगे, ऐसा समुद्री वैज्ञानिक मानते हैं। वरना जिस तरीके से
पूरी दुनिया का पर्यावरण तेजी से बिगड़ रहा है, उसमें समुद्र भी बचा नहीं रह पायेगा। साथ
ही प्लास्टिक प्रदूषण की वजह से समुद्र की गहराइयों में रहने वाले जीवन को अधिक
नुकसान पहुंच रहा है। कई प्राणी तो सिर्फ ज्यादा प्लास्टिक निगल लेने की वजह से प्राण
गवां बैठे हैं।
हम चांद और मंगल के मुकाबले समुद्र को कम जानते हैं
लीवरपुल विश्वविद्यालय के समुद्र विज्ञानी प्रोफसर जॉर्ड वोल्फ कहते हैं कि आधुनिक
विज्ञान और जानकारी के मामले में यह कहना बेहतर होगा कि जितना हम आज चांद
अथवा मंगल ग्रह के बारे में जानते हैं, उतनी जानकारी हमें समुद्री की गहराइयों की नहीं
हैं। अंतरिक्ष का बेहतर मैप उपलब्ध है जबकि समुद्र की गहराइयों की मैपिंग अब भी
अधूरी है। इसी वजह से जब कोई नया शोध समुद्र की गहराई तक पहुंचता है तो कुछ न
कुछ नया हमारी जानकारी में आ जाता है। एडिनवर्ग विश्वविद्यालय के प्रोफसर मुरे
रॉबर्ट्स कहते हैं कि पिछले पांच वर्षों का एटलस प्रोजेक्ट ही इतनी सारी जानकारी दे गयी
है। इसके तहत समुद्र की गहराई के कुछ खास इलाकों की पहचान भी हुई है। उन्होंने स्पष्ट
किया कि इन खास समुद्री इलाकों की वजह से ही कुछ प्रजातियां बची हुई हैं। अगर यह
इलाके भी प्रदूषण की चपेट में आ गये तो इन प्रजातियों के बचने का कोई रास्ता नहीं
होगा।
बताते चलें कि 13 देशों के समुद्री वैज्ञानिक अटलांटिक महासागर पर मिलकर यह शोध
कर रहे हैं। इसी क्रम में इन बारह नई प्रजातियों का पता चला है, जिनके बारे में पहले से
कोई जानकारी नहीं थी। इस शोध के बारे में ट्रोमसो विश्वविद्यालय के प्रोफसर क्लेयर
आर्मस्ट्रांग ने कहा कि इतना कुछ जान लेने के बाद यह समझना आसान है कि खतरा कहां
और कैसे हो सकता है। इसलिए उन्हें बचाने पर अधिक ध्यान देने की सख्त जरूरत है।
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